“आज और कल”
Ankit Bansal
Date - March, 2004
न फिक्र थी, न खबर थी कोई
बेहोश से हमेशा रहते थे
ना कोई डर ना बेचेनी
हसते - मुस्कराते जीया करते थे
लेकिन थमी - थमी लगती है ये सांसें
आज फिर, क्यों उसी ख्याल में
रूक गए हैं फिर यह कदम जैसे
आज फिर किसी घबराहट में
आज फिर रास्ते के पत्थर चुब्ते हैं
पेड से जब पत्ते गिरते हैं, तो तकलीफ होती है
आज फिर यह हवा चलती है
और क्यों बार बार इस मन को जलाती है
जो सदियों से चुप थे , वो पक्षी अब चेह्चाते हैं
आज ये भी जैसे मेरी हंसी उड़ाते हैं
फिर बादल में गर्जन है आज
फिर आसमान में अँधेरा है
फिर वही रात है आज, फिर वही सवेरा है
वही एहसास है फिर , अब फिर वही प्यास है
फिर बेचनी है इस मन में, जाने क्यों इंतजार में
थमी थमी लगती हैं यह सांसें, आज फिर क्यों उसी ख्याल में