Ankit Bansal
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बचपन
Ankit Bansal
Jun 2010
आँख
मूंदे
,
चला अँधेरे
पग
पर
असंख्य
भाव
विचार
लिए
,
झूझता
तत्पर
बिन
विश्वास
,
ले
निराशा
-
आया
किधर
उसी
दोराहे
,
वही
डगर – देखा फिर –
बचपन
जहाँ
विवेक
राह
भुलाये
स्वप्न
दिशा
बताता
है
जिस
पर
प्रौढ़ भटक
जाये
वो
मार्ग दिखाता
है
-
बचपन
प्रातः
काल
,
शीतल
धूप
सा
पत्ते
पर
पड़ी
,
कोमल
ओस
सा
रात
काली
,
सितारों
सा
आंखों
में
समेटा
खाब
सा
,
बचपन
जीवन
घुटन
,
श्वास
सा
खाली
आँखों
में,
विश्वास
सा
झुलसी
धरती
,
बरसात
सा
-
बचपन
मुश्किल
पहेलिका
,
कटु
जीवन
हस्ता
नादान
,
बन
एक
प्रश्न
अबोध
,
मासूम
,
लिए
समझ
अद्भुत
श्वासों
को
भी
चकित
करते
देखा
-
बचपन
बहती
हवा,
मुट्ठी
में
जकड़ने
दौड़ता
-
अपनी
परछाई
पकड़ने
देता
विश्वास
सीमाएं
तौड़
सारी
पानी
पर
चलते
देखा
-
बचपन
न
भय
का
भय,
न
कष्ट
का
बोध
न
लज्जा, क्षोभ, न क्रोध
निर्वस्त्र
बारिश
में
भीगता
नंगे
पांव
तपती
धरती
पर
खेलते
देखा
-
बचपन
सांसे
शिथिल
हो
जाएँ
थकते
देखा
नहीं
कभी
उसे
जीने
को
,
नित्य नवीन
रचने
को
उत्साह
बटोरता
-
बचपन
उड़ता
आकाश
में,
एक
परिंदा
एक
घरोंदा
जीवन
किरण
का
यूँ
तो
देखा
नहीं कभी,
पीछे
मुडके
आज
फिर
किसी
दोराहे
पर
खड़ा
पाया
–
एक
स्वप्न
खाली
आँखों
में,
विश्वास
सा
–
बचपन