प्रकृति
Ankit Bansal
February 2010
कल्पना तूलिका, जीवन पट पर
नवीन भाव, रंग विविध प्रकार
न हर्षित, बिना क्षोभ ही
रंग बिखेरता, कौन चित्रकार
जड़ जीवन, चेतन श्वास
रचता माया, तिमिर, प्रकाश
भाव क्या उस रचना में
क्या सम्बन्ध, कैसा विश्वास
पृथक नहीं, अस्तित्व एक
रचता है जिसे, वही रचती भी है
नित्य प्रातः आशा पुष्प बिखेरती
संध्या फिर ख़ुशी से समेटती भी है
भाव है वह, प्रेरणा है
प्रकृति उत्पत्ति, कल्पना है
आशा प्रातः, स्वप्न रजनी
जनक पिता, धारिणी जननी
स्वयं पहेलिका, उत्तर बनती
वायु बन पत्ते संग अठखेलियाँ करती
मूक बधिर, संचार गति
जीवन लेकर भी जीवन रचती
ज्ञान चेतन, बस भाव रहे
अमूल्य जीवन, विश्वास रहे
बहाव हो, लेकिन बहे नहीं
थके जरूर पर रुके नहीं
भाव है, एक प्रेरणा है
जीवन उत्पत्ति, कल्पना है