Ankit Bansal
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चैतन्य
घिरकर अज्ञान अंधकार से
शाश्वत सत्य ठुकराता गया
जीवन का ताना बाना
जाना जब विश्वास किया
दी सभी प्रार्थनाएं
अहम् अपना तज दिया
त्यागा अंधकार मय अज्ञान भी
चैतन्य स्वरुपतू मिला
तू आया, खुशियां बिखरी
स्वपन एक याथार्थ हुआ
पौष की ठिठुरन से पहले
घरोंदा यह आबाद हुआ
कहीं दिवस कुछ माह निकले
हवाओं में वीणा बजती है
बाग में एक नव पुष्प
मद्धम मीठी सुगंध खिलती है
कोशिश हमेशा रहे ऐसी
चेतना का प्रादुर्भाव हो
प्रकाशित हो अज्ञान पथ
सदैव चैतन्य हो
चले ऐसे पथ हमेशा
द्वेष गृहणा न कपट छुए
आत्म क्रांति पथ पर निरंतर
अग्रसर तू चैतन्य बने