Ankit Bansal
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सर्दी
Ankit Bansal
December 2010
पत्ता-पत्ता मुरझा गया
डाली-डाली सूख गयी
इस सर्द हवा में
साँसों से नमी चली गयी
दो पल देखने को तरसे
उस नर्म धूप का एहसास हुए अरसे
ठण्ड कुछ इतनी बढ़ी
खून नस-नस जम गयी
पक्षी घांस दाना ढूंढते
जीवन इस जंगल में पानी को तरसे
भूख प्यास से भटके व्याकुल
आ गए कितनी दूर घरसे
दिन निकलता है, छिप जाता है
रात अँधेरी, कोहरा छा जाता है
कुछ दिखता नहीं, सूझता नहीं इस सूनसान में
गुम इस राह में, क्यों निकल आये घर से
ठिठुरती हथेलियाँ बदन में समेटे
हवा में उडती चादर को लपेटे
ढूंढते हैं - न घांस न पानी
पत्ते पर ठिठुरती ऑस की बूँदें
- कोई शायद पुरानी कहानी